तक्षन रथं सुव्र्तं विदम्नापसस्तक्षन हरी इन्द्रवाहा वर्षण्वसू |
तक्षन पित्र्भ्यां रभवो युवद वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवम ||
आ नो यज्ञाय तक्षत रभुमद वयः करत्वे दक्षाय सुप्रजावतीमिषम |
यथा कषयाम सर्ववीरया विशा तन नःशर्धाय धासथा सविन्द्रियम ||
आ तक्षत सातिमस्मभ्यं रभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः |
सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पर्तनासु सक्षणिम ||
रभुक्षणमिन्द्रमा हुव ऊतय रभून वाजान मरुतः सोमपीतये |
उभा मित्रावरुणा नूनमश्विना ते नो हिन्वन्तु सातये धिये जिषे ||
रभुर्भराय सं शिशातु सातिं समर्यजिद वाजो अस्मानविष्टु |
तन नो ... ||
http://www.vogaz.com
तक्षन पित्र्भ्यां रभवो युवद वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवम ||
आ नो यज्ञाय तक्षत रभुमद वयः करत्वे दक्षाय सुप्रजावतीमिषम |
यथा कषयाम सर्ववीरया विशा तन नःशर्धाय धासथा सविन्द्रियम ||
आ तक्षत सातिमस्मभ्यं रभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः |
सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पर्तनासु सक्षणिम ||
रभुक्षणमिन्द्रमा हुव ऊतय रभून वाजान मरुतः सोमपीतये |
उभा मित्रावरुणा नूनमश्विना ते नो हिन्वन्तु सातये धिये जिषे ||
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