Wednesday, 8 February 2012

Rig Veda Book 1 Hymn 19

परति तयं चारुमध्वरं गोपीथाय पर हूयसे |
मरुद्भिरग्न आ गहि ||
नहि देवो न मर्त्यो महस्तव करतुं परः |
म... ||
ये महो रजसो विदुर्विश्वे देवासो अद्रुहः |
म... ||
य उग्रा अर्कमान्र्चुरनाध्र्ष्टास ओजसा |
म... ||
ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः |
म... ||
ये नाकस्याधि रोचने दिवि देवास आसते |
म... ||
य ईङखयन्ति पर्वतान तिरः समुद्रमर्णवम |
म... ||
आ ये तन्वन्ति रश्मिभिस्तिरः समुद्रमोजसा |
म... ||
अभि तवा पूर्वपीतये सर्जामि सोम्यं मधु |
म... ||

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