Friday 2 March 2012

Rig Veda Book 1 Hymn 188

समिद्धो अद्य राजसि देवो देवैः सहस्रजित |
दूतो हव्या कविर्वह ||
तनुनपाद रतं यते मध्वा यज्ञः समज्यते |
दधत सहस्रिणीरिषः ||
आजुह्वानो न ईड्यो देवाना वक्षि यज्ञियान |
अग्ने सहस्रसा असि ||
पराचीनं बर्हिरोजसा सहस्रवीरमस्त्र्णन |
यत्रादित्या विराजथ ||
विराट सम्राड विभ्वीः परभ्वीर्बह्वीश्च भूयसीश्चयाः |
दुरो घर्तान्यक्षरन ||
सुरुक्मे हि सुपेशसाधि शरिया विराजतः |
उषासावेहसीदताम ||
परथमा हि सुवाचसा होतारा दैव्या कवी |
यज्ञं नो यक्षतामिमम ||
भारतीळे सरस्वति या वः सर्वा उपब्रुवे |
ता नश्चोदयत शरिये ||
तवष्टा रूपाणि हि परभुः पशुन विश्वान समानजे |
तेषां नः सफातिमा यज ||
उप तमन्या वनस्पते पाथो देवेभ्यः सर्ज |
अग्निर्हव्यानि सिष्वदत ||
पुरोगा अग्निर्देवानां गायत्रेण समज्यते |
सवाहाक्र्तीषु रोचते ||

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